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"गुलाबी याद" आज किताबों के पन्नों को यूँ पलटा हूँ

"गुलाबी याद"
आज किताबों के पन्नों को यूँ पलटा हूँ मै,
जैसे तेरी यादों से यूँ  लिपटा हुआ हूँ मै,। 
मिला ये आपका दिया गुलाब यूँ पन्नों से,
जैसे आप ही निकले हो दिल के कोने से।
मुद्दतों बाद यूँ आए हो सपनों में,
नही फुरसत है क्या आने को ख्वाबों में।
हवाएं शोर करती हैं यूँ ही आओ न,
साँसों की वही खुशबू यूँ ही बिखेरो न।
चला जाता हूँ यूँ अक्सर इस जहाँ से,
जैसे सितारें जाते हैं दिन में आसमां से।
रहता हूँ अक्सर यादों को समेटे दिल में,
पर बिखर जाता हूँ अक्सर इस जहाँ में।
खोया हूँ नही पर पाया भी कहाँ मैने,
यूँ गुलाब की तरह खुदको बनाया आपने।
जिस गली में था भटकता हूँ वहीं पर,
बस फर्क तेरे बिन भटकता हूँ वहीं पर।
चुराया कुछ नही आपने मुझसे शिवा मेरे,
बचा ही अब है क्या मुझमें यूँ शिवा तेरे।
सुना है "राज" अब भी है मेरा यूँ सीने में,
फिर क्या वही बात अब भी है यूँ जीने में।
ये नही कहता कि अब नही मिलते हो तुम,
पर वेवक्त यूँ ख्वाबों में क्यों सताते हो तुम।
आज किताबों के पन्नों को यूँ पलटा हूँ मै,
जैसे तेरी यादों से यूँ लिपटा हुआ हूँ मै।
----कुशवाहाजी

©राजेश कुशवाहा #गुलाबी_यादें 
आज किताबों के पन्नों को यूँ पलटा हूँ मै,
जैसे तेरी यादों से यूँ  लिपटा हुआ हूँ मै,। 
मिला ये आपका दिया गुलाब यूँ पन्नों से,
जैसे आप ही निकले हो दिल के कोने से।
मुद्दतों बाद यूँ आए हो सपनों में,
नही फुरसत है क्या आने को ख्वाबों में।
हवाएं शोर करती हैं यूँ ही आओ न,
"गुलाबी याद"
आज किताबों के पन्नों को यूँ पलटा हूँ मै,
जैसे तेरी यादों से यूँ  लिपटा हुआ हूँ मै,। 
मिला ये आपका दिया गुलाब यूँ पन्नों से,
जैसे आप ही निकले हो दिल के कोने से।
मुद्दतों बाद यूँ आए हो सपनों में,
नही फुरसत है क्या आने को ख्वाबों में।
हवाएं शोर करती हैं यूँ ही आओ न,
साँसों की वही खुशबू यूँ ही बिखेरो न।
चला जाता हूँ यूँ अक्सर इस जहाँ से,
जैसे सितारें जाते हैं दिन में आसमां से।
रहता हूँ अक्सर यादों को समेटे दिल में,
पर बिखर जाता हूँ अक्सर इस जहाँ में।
खोया हूँ नही पर पाया भी कहाँ मैने,
यूँ गुलाब की तरह खुदको बनाया आपने।
जिस गली में था भटकता हूँ वहीं पर,
बस फर्क तेरे बिन भटकता हूँ वहीं पर।
चुराया कुछ नही आपने मुझसे शिवा मेरे,
बचा ही अब है क्या मुझमें यूँ शिवा तेरे।
सुना है "राज" अब भी है मेरा यूँ सीने में,
फिर क्या वही बात अब भी है यूँ जीने में।
ये नही कहता कि अब नही मिलते हो तुम,
पर वेवक्त यूँ ख्वाबों में क्यों सताते हो तुम।
आज किताबों के पन्नों को यूँ पलटा हूँ मै,
जैसे तेरी यादों से यूँ लिपटा हुआ हूँ मै।
----कुशवाहाजी

©राजेश कुशवाहा #गुलाबी_यादें 
आज किताबों के पन्नों को यूँ पलटा हूँ मै,
जैसे तेरी यादों से यूँ  लिपटा हुआ हूँ मै,। 
मिला ये आपका दिया गुलाब यूँ पन्नों से,
जैसे आप ही निकले हो दिल के कोने से।
मुद्दतों बाद यूँ आए हो सपनों में,
नही फुरसत है क्या आने को ख्वाबों में।
हवाएं शोर करती हैं यूँ ही आओ न,

#गुलाबी_यादें आज किताबों के पन्नों को यूँ पलटा हूँ मै, जैसे तेरी यादों से यूँ लिपटा हुआ हूँ मै,। मिला ये आपका दिया गुलाब यूँ पन्नों से, जैसे आप ही निकले हो दिल के कोने से। मुद्दतों बाद यूँ आए हो सपनों में, नही फुरसत है क्या आने को ख्वाबों में। हवाएं शोर करती हैं यूँ ही आओ न, #reading #कुशवाहाजी