एक अरदास अपनी माँ से , तू नाराज तो हे इन्सानों से
नहीं तो मंदिरों के दरवाज़े बंद ना करती
सजा दे रही हो कुदरत से खिलवाड़ की
रोती तो तू भी हे जब इंसान आंसु बहाता
माफ़ करदे अपने बच्चों के हर गुनाह
सब कहते हे, तेरी मर्ज़ी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता
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