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आज थार मरुस्थल गामी हूं कल कल-कल बहता पानी हूं मैं

आज थार मरुस्थल गामी हूं
कल कल-कल बहता पानी हूं
मैं रज का कण रज का सेवक
रज में ही तो मिल जाना है
ए पथगामिनी क्यों पथ अवरुद्ध करे?
क्या तुझे साथ में जाना है?
ए पथगामिनी क्यों पथ अवरुद्ध करे.......

होगा क्या शुभकर मेरा 
एक तेरे साथ आने मात्र से
विष भी क्या कभी अमृत हुआ
 केवल स्पर्श सवर्ण पात्र से
तुझको अलंकृत सब तीर करे
मुझ तीर रहित सरित को तो
एक दिन इतस्ततः थम जाना है
ए पथगामिनी क्यों पथ अवरुद्ध करे.......

तू प्राणवायु इस दुनिया की
मैं अनंत के अंत की भांति हूं
तू स्मृति है महामुनियों की
मैं चल-अचल सी भ्रांति हूं
स्मृति विस्मृति का क्यों संग करे?
क्या उसे भी विस्मृति में ढल जाना है?
ए पथगामिनी क्यों पथ अवरुद्ध करे......

तू शोभायुक्त पिक सप्तरागी
मैं पन्था जग का वैरागी
एक दूजे के प्रतिकूल हम
कैसे बन जायें सह-भागी
क्यों मुझ संग तू सपने सँजोये
इस नीरज को तो इस जल में 
ही आदि अंत को पाना है
ए पथगामिनी क्यों पथ अवरुद्ध करे......

©Neeraj Vats
  #राष्ट्रीय_हिंदी_दिवस
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आज थार मरुस्थल गामी हूं
कल कल-कल बहता पानी हूं
मैं रज का कण रज का सेवक
रज में ही तो मिल जाना है
ए पथगामिनी क्यों पथ अवरुद्ध करे?
neerajvats2014

Neeraj Vats

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