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परोपकार से पूर्ण संसार में ऐसे कौन व्यक्ति होगा जो

परोपकार से पूर्ण संसार में ऐसे कौन व्यक्ति होगा जो पुणे कामना नहीं चाहता हो प्रतिदिन हम मनुष्य को पुण्य अर्जित करने की आशंका में तरह-तरह के जतन करते हुए देखते हैं इस आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए भारतीय सनातन संस्कृति में सत्कर्म के साथ विवादित धार्मिक विधि-विधान हुआ अनुष्ठानों में मन कर्म वचन से संगठन के अनेक मार्ग बताए गए हैं यथा पूजा-अर्चना स्नान दान जप तप और यज्ञ हवन आदि इन धार्मिक अनुष्ठानों के साथ हमारे ऋषि-मुनियों मनीषियों ने परोपकार को सर्वप्रथम हुआ सुलभ मार्ग बताया है गोस्वामी तुलसीदास जीने मानस में परोपकार की महत्ता खूब समझाइए प्राकृतिक भी हमें सर्वोत्तम प्रकार के ही दर्शन करती है सूर्य द्वारा उषा प्रदान करना चंद्रमा द्वारा शीतलता प्रदान करना मेरे को द्वारा वर्षा प्रदान करना पेड़ों द्वारा पुष्प प्रदान करना फंक्शन गंधवा प्राणवायु प्रदान करना नदी सरोवर द्वारा अमृत्तुल्य जल प्रदान करना परोपकार की उदार भावना के ही दर्शन होते हैं परोपकार का शाब्दिक अर्थ है दूसरों की भलाई शाब्दिक अर्थ से इतर दार्शनिक दृष्टि में बिना प्रतिफल प्राप्त किए आशा से परमार्थ की भावना से किया गया हर कार्य परोपकार माना जाता है स्वामी विवेकानंद ने कर्म योग में लिखा है कि हम सदैव प्रोकार करते ही रहना चाहिए एक दाता के ऊंचे आसन पर खड़े होकर और अपने हाथ में दो पैसे लेकर यह मत कह दो कि है विकारी ले यह मैं तुझे देता हूं तुम सुन इस बात के लिए कृतज्ञ रहो कि तुम्हें वह निर्धन व्यक्ति मिला जिसे दान देकर तुम्हें स्वयं अपना उपकार किया है धन पाने वाला नहीं होता देने वाला होता है इस बात के लिए कृतज्ञ रहो कि संसार में तुम्हें अपनी दयालुता का प्रयोग करने और इस प्रकार पवित्र व पूर्ण होने का अवसर प्राप्त हो हुआ सृष्टि ही इसकी निष्काम होकर परोपकार की भावना से दीन दुखियों की सेवा कीजिए यही सेवा आपको परलोक सुधारने का पूर्ण प्रदान करेगी

©Ek villain #Propaganda 

#fog
परोपकार से पूर्ण संसार में ऐसे कौन व्यक्ति होगा जो पुणे कामना नहीं चाहता हो प्रतिदिन हम मनुष्य को पुण्य अर्जित करने की आशंका में तरह-तरह के जतन करते हुए देखते हैं इस आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए भारतीय सनातन संस्कृति में सत्कर्म के साथ विवादित धार्मिक विधि-विधान हुआ अनुष्ठानों में मन कर्म वचन से संगठन के अनेक मार्ग बताए गए हैं यथा पूजा-अर्चना स्नान दान जप तप और यज्ञ हवन आदि इन धार्मिक अनुष्ठानों के साथ हमारे ऋषि-मुनियों मनीषियों ने परोपकार को सर्वप्रथम हुआ सुलभ मार्ग बताया है गोस्वामी तुलसीदास जीने मानस में परोपकार की महत्ता खूब समझाइए प्राकृतिक भी हमें सर्वोत्तम प्रकार के ही दर्शन करती है सूर्य द्वारा उषा प्रदान करना चंद्रमा द्वारा शीतलता प्रदान करना मेरे को द्वारा वर्षा प्रदान करना पेड़ों द्वारा पुष्प प्रदान करना फंक्शन गंधवा प्राणवायु प्रदान करना नदी सरोवर द्वारा अमृत्तुल्य जल प्रदान करना परोपकार की उदार भावना के ही दर्शन होते हैं परोपकार का शाब्दिक अर्थ है दूसरों की भलाई शाब्दिक अर्थ से इतर दार्शनिक दृष्टि में बिना प्रतिफल प्राप्त किए आशा से परमार्थ की भावना से किया गया हर कार्य परोपकार माना जाता है स्वामी विवेकानंद ने कर्म योग में लिखा है कि हम सदैव प्रोकार करते ही रहना चाहिए एक दाता के ऊंचे आसन पर खड़े होकर और अपने हाथ में दो पैसे लेकर यह मत कह दो कि है विकारी ले यह मैं तुझे देता हूं तुम सुन इस बात के लिए कृतज्ञ रहो कि तुम्हें वह निर्धन व्यक्ति मिला जिसे दान देकर तुम्हें स्वयं अपना उपकार किया है धन पाने वाला नहीं होता देने वाला होता है इस बात के लिए कृतज्ञ रहो कि संसार में तुम्हें अपनी दयालुता का प्रयोग करने और इस प्रकार पवित्र व पूर्ण होने का अवसर प्राप्त हो हुआ सृष्टि ही इसकी निष्काम होकर परोपकार की भावना से दीन दुखियों की सेवा कीजिए यही सेवा आपको परलोक सुधारने का पूर्ण प्रदान करेगी

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