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दरवाज़ों से न दीवारों से , घर बनता है घर वालों से।

दरवाज़ों से न दीवारों से , घर बनता है घर वालों से।
बड़ा कोई घर बनाएगा,पैसे भी खूब लगाएगा।
फिर घर मे खुद न रहने आएगा
घर भर जाएगा मकड़ी के जालों से,
दरवाज़ों से न दीवारों से , घर बनता है घर वालों से।
घर में अब कोई न होता है,न दादी है न पोता है 
घर अपने नैन भिगोता है,भीतर भीतर ही रोता है।
घर खिलता है दिलवालों से,
दरवाज़ों से न दीवारों से , घर बनता है घर वालों से।
घर में एक बड़ी छत है, बस उससे घर की हिफाज़त है
घर में ही सब रियायत है, ये घर ही एक सियासत है।
ये घर  भी बचा है तालों से ,
दरवाज़ों से न दीवारों से , घर बनता है घर वालों से।

©Dr Amit Gupta
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