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मै अक्सर अख़बार लिये सोचता हूं, कल ये भी रद्दी के

मै अक्सर अख़बार लिये सोचता हूं,
कल ये भी रद्दी के भाव हो जाएगा। देवियों और सज्जनों, कई घरों में अख़बार आते ही यह होड़ रहती है कि अख़बार सबसे पहले कौन पढ़ेगा?
कुछ अख़बार प्रेमी तो ऐसे होते हैं कि अख़बार उनके अलावा किसी ने पहले पढ़ लिया तो वह उसे बासी कहकर पढ़ना नहीं पसंद करते। कुछ खेल समाचारों के पन्ने ही पढ़ते हैं, कुछ को राजनैतिक समाचारों में रुचि है, कोई अखबारों के संपादकीय खोजता है तो कोई फ़िल्मी समाचारों को पढ़ता है और फिर अपने क्षेत्रीय खबरों को तो सभी पढ़ना पसंद ही करते हैं।

कुछ ऐसे भी हैं जो सुबह अख़बार पढ़ने के सख़्त ख़िलाफ़ भी होते हैं क्योंकि उनका मानना होता है सुबह की शुरुआत अच्छी चीज़ों से करना चाहिए क्योंकि उनके मुताबिक़ अख़बार में अच्छे खबरें आती ही नहीं! ऐसे लोग वाक़ई शाम को अख़बार पढ़ने को तरजीह देते हैं।

ख़ैर, यह तो सच है कि अख़बार पढ़ते समय हमारे मन में कई तरह के विचार चलते रहते हैं, अच्छे, बुरे!

उसी को आधार बना कर अभिषेक चौहान यह कविता लिखते हैं, आइए कविता पढ़ते हैं
मै अक्सर अख़बार लिये सोचता हूं,
कल ये भी रद्दी के भाव हो जाएगा। देवियों और सज्जनों, कई घरों में अख़बार आते ही यह होड़ रहती है कि अख़बार सबसे पहले कौन पढ़ेगा?
कुछ अख़बार प्रेमी तो ऐसे होते हैं कि अख़बार उनके अलावा किसी ने पहले पढ़ लिया तो वह उसे बासी कहकर पढ़ना नहीं पसंद करते। कुछ खेल समाचारों के पन्ने ही पढ़ते हैं, कुछ को राजनैतिक समाचारों में रुचि है, कोई अखबारों के संपादकीय खोजता है तो कोई फ़िल्मी समाचारों को पढ़ता है और फिर अपने क्षेत्रीय खबरों को तो सभी पढ़ना पसंद ही करते हैं।

कुछ ऐसे भी हैं जो सुबह अख़बार पढ़ने के सख़्त ख़िलाफ़ भी होते हैं क्योंकि उनका मानना होता है सुबह की शुरुआत अच्छी चीज़ों से करना चाहिए क्योंकि उनके मुताबिक़ अख़बार में अच्छे खबरें आती ही नहीं! ऐसे लोग वाक़ई शाम को अख़बार पढ़ने को तरजीह देते हैं।

ख़ैर, यह तो सच है कि अख़बार पढ़ते समय हमारे मन में कई तरह के विचार चलते रहते हैं, अच्छे, बुरे!

उसी को आधार बना कर अभिषेक चौहान यह कविता लिखते हैं, आइए कविता पढ़ते हैं