गत गए बरस ईद का दिन कितना अच्छा था चाँद को देखा, लगा चेहरा सबको अच्छा था हाथ उठाकर जब उसने, आँखों ही आँखों में रब से दुआँओं में, मेरी शिफ़ा का वर माँगा था मेरी कोमल हाथों कि अंगुलियाँ ले "हाथों" में कितने प्यार से ललाट को तसल्ली से चुमा था यही वो प्यार है जिसका न कोई मज़हब होता है मज़हबें होती अलग-अलग, मातृत्व एक होता है ©अनुषी का पिटारा.. #मातृत्व #माँ #माँ_का_प्यार #माँ #अनुषी_का_पिटारा