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गर्मी से कर लेते हम कब की बगावत, जो न देती कुदरत आ

गर्मी से कर लेते हम कब की बगावत,
जो न देती कुदरत आम की रिश्वत. मुझे गर्मियों का शाम याद आता है,
जिस पर फेंका था पत्थर वो आम याद आता है,
यहाँ तो है हर तरफ उजाले ही उजाले
मुझे उस आँगन का वो अकेला चाँद याद आता है.

कुछ लोग इस दुनिया में न जाने कैसे
अपनी माँ से ऊब जाते है,
हम तो आम का अचार देखते ही
गर्मी से कर लेते हम कब की बगावत,
जो न देती कुदरत आम की रिश्वत. मुझे गर्मियों का शाम याद आता है,
जिस पर फेंका था पत्थर वो आम याद आता है,
यहाँ तो है हर तरफ उजाले ही उजाले
मुझे उस आँगन का वो अकेला चाँद याद आता है.

कुछ लोग इस दुनिया में न जाने कैसे
अपनी माँ से ऊब जाते है,
हम तो आम का अचार देखते ही