एक वो रात, अंधियारे का साथ, तारों की रोशनी, बड़ा रही अपने हाथ, चांद भी जगमगाया, थे उसमें भी कितने दाग, अंधियारी गलियों में, सन्नाटो का साया, पीछे मुड़ के ना तू देख, क्यों वह तेरे पीछे आया, कुत्ते भी भौंक रहे हैं, कैसा डर यह छाया? कब्रिस्तान के बगल से क्यों तू गुजरा, यही सोच मन घबराया, चैन से सोते अपनी कब्रों में, फिर कौन है वो क्यों उसने मुझे बुलाया, कहता मुझको आत्मदाह तू कर ले, नहीं तो ला दूंगा जीवन में तेरे प्रलय, डर के मारे स्कूटर जो तेज भगाया, बिना ब्रेक लगाए घर को मैं आया, कितना घबराया इतना घबराया, डर के मारे कुछ कहना पाया. आज भी उसका चेहरा सोचू तो, कितनी रातें उसने मुझे जगाया. ©Rapchik Kaushal https://youtu.be/9r2nccQ5RAI #shhh