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मेरे जिस्म पर दबस पडी़ हुई थी मैं डरी हुई और नर्

मेरे जिस्म पर दबस पडी़ हुई थी 
 मैं डरी हुई और नर्वस पड़ी हुई थी
किसी और के भरोसे न्याय को खड़ी हुई थी
तब फिर से मैं जिंदा हुई थी
मगर
मर गयी उस दिन में
मैं ही आरोपित हुई थी
मेरी जिंदगी को कर दिया धुँआ- धुँआ
 वो निर्दोष और मैं बेबुनियाद साबित हुई थी।

©Santosh Narwar Aligarh
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