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विकल अवनि दिख रही,सूख गए जब ताल। मानव अपने लाभ को,

विकल अवनि दिख रही,सूख गए जब ताल।
मानव अपने लाभ को,बुरा किया है हाल।।१
पक्षी कलरव शून्य है,बना हुआ सुनसान।
हरियाली भी लुप्त है,नहीं दिखता इन्सान।।२
ठण्डी छाँव मिले कहाँ,शेष नहीं जब पेड़।
विकट खड़ा संकट  यहाँ,मत तू कहता छेड़।।३
प्राणवायु जब क्षीण हो ,क्या बचेंगे प्राण।
तड़प रहे सब जीव बस,ढूँढ रहे हैं त्राण।।४

©Bharat Bhushan pathak
  #WorldEnvironmentDay #saveearth🌍 #Saveenvironment #पर्यावरणदिवस 

विकल अवनि दिख रही,सूख गए जब ताल।
मानव अपने लाभ को,बुरा किया है हाल।।१
पक्षी कलरव शून्य है,बना हुआ सुनसान।
हरियाली भी लुप्त है,नहीं दिखता इन्सान।।२
ठण्डी छाँव मिले कहाँ,शेष नहीं जब पेड़।
विकट खड़ा संकट  यहाँ,मत तू कहता छेड़।।३

#WorldEnvironmentDay saveearth🌍 #Saveenvironment #पर्यावरणदिवस विकल अवनि दिख रही,सूख गए जब ताल। मानव अपने लाभ को,बुरा किया है हाल।।१ पक्षी कलरव शून्य है,बना हुआ सुनसान। हरियाली भी लुप्त है,नहीं दिखता इन्सान।।२ ठण्डी छाँव मिले कहाँ,शेष नहीं जब पेड़। विकट खड़ा संकट यहाँ,मत तू कहता छेड़।।३ #कविता

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