हम ज़िंदगी की राह के दरबान हो गए। कमज़ोर थे जो इल्म में सुल्तान हो गए। मल्बूस देखे क़ीमती राजा की देह पर खाली जो देखा दिल सभी हैरान हो गए। आती नहीं है ढंग से जिनको लुग़त तलक बज़्म-ए-अदब के आज वो रसखान हो गए। भूकों से पूछते हैं वो रोज़े किए शुरू ? हमने भी कह दिया कि हां रमज़ान हो गए। तुमने तो ज़र-ज़मीन से दौलत बटोर ली हम लोग प्यार करके ही धनवान हो गए। तुम क़ाफ़िया ग़ज़ल का तो मैं भी रदीफ़ हूँ जिनमें हमारा प्यार वो अरकान हो गए। 'मीरा' तेरे ख़याल में फ़िक्र-ए-सुख़न रही जो क़ाबिल-ए-अदब थे वो दीवान हो गए। #ग़ज़ल 221 2121 1221 212 🌹🌷🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹 हम ज़िंदगी की राह के दरबान हो गए। कमज़ोर थे जो इल्म में सुल्तान हो गए। मल्बूस देखे क़ीमती राजा की देह पर खाली जो देखा दिल सभी हैरान हो गए।