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एक हुजूम चला था उस दिन, मुनासिब, ग़ैर मुनासिब, की ब

एक हुजूम चला था उस दिन,
मुनासिब, ग़ैर मुनासिब, की बात लिये,
हक़, हलाल आज़ादी की बात लिये,
चेहरे, नारे और मशालें साथ लिये,
सुलगती आंखे,जलती मोमबत्ती,
जुबान पे हुंकार, मन मे एक सैलाब लिये।
जो हुआ वो गलत हुआ,
अब न ऐसा होने देंगे 
खिलाफत-ए-जुंल्म की ये मशाल
अब नही हम बुझने देंगे।
समय का एक पहिया आया 
कुचल गया मोमबत्ती को,
गर्दन टुट गयी लौ की।
पिघले मोम ने लिखा सड़क पे---
दीवाली और रैलियां की जलती मोमबत्तियां,
 सिर्फ जलती है
रौशनी नही करती।

©Aman deep 
  change for society needs some serious efforts.
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aakashratan6184

Aman deep

Growing Creator

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