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Village Life पर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा

Village Life  पर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी, बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास । क्या कहा कि मैं घनघोर निराशावादी हूँ? तब तुम्हीं टटोलो हृदय देश का, और कहो, लोगों के दिल में कहीं अश्रु क्या बाकी है? बोलो, बोलो, विस्मय में यों मत मौन रहो ।

©Neelam Modanwal
  #villagelife #hunarbaaz  @छोटा लेखक हार्दिक महाजन वंदना .... Sircastic Saurabh R Ojha Anshu writer  Aditya Sethi Ji Mahi अदनासा- डॉ.वाय.एस.राठौड़ (.मीत.) ग्वालियर