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औरत जब बाल बांधती है, बांधती है जिम्मेदारियो को, उ

औरत जब बाल बांधती है,
बांधती है जिम्मेदारियो को,
उठाती है दुनिया की भारी भरकम जिम्मेदारिया
जो नहीं तोड़ पाती उसकी कमर..
इसीलिये जब भी बाल बांधने की बात आती है,
तो याद आता है हमें शक्ति का जज़्बा,
जो हर मुश्किल को आसान कर देती है,
जो हर तकलीफ़ को सहने की हिम्मत देती है।
उसके बाल नहीं होते बस एक सजावट,
बल्कि एक ज़िम्मेदारी होती है,
वह बिना किसी शिकायत के उसका समर्थन करता है।
दोस्तों को बुलाना, खाना बनाना, घर संभालना,
इन सब में भी उसकी जिम्मेदारी होती है
उसको नहीं होती दुनिया भर  की थकान,
वह अपने बालों के साथ अपनी ताकत बांधती है।
अपनी ख्वाहिशें बांधती है..
अपने सपने बांधती है..
और बांधती है अपनी उम्मीदों को...

©Prachii Deepak Goel
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