जाना फिर अकेले है ज़िन्दगी है चार दिनों की फिर क्यों ये झमेले हैं, आए थे जग में अकेले जाना फिर अकेले है। इंसान है हैवान न बन छल-दंभ की दुकान न बन, कौन है अपना कौन पराया सब दुनिया वाले तेरे हैं। आए थे जग में अकेले जाना फिर अकेले है। (पूरी कविता captionमें पढें) #प्रकाशित कविता जाना फिर अकेले है ज़िन्दगी है चार दिनों की फिर क्यों ये झमेले हैं, आए थे जग में अकेले जाना फिर अकेले है।