Nojoto: Largest Storytelling Platform

जाना फिर अकेले है ज़िन्दगी है चार दिनों की फिर क्य

जाना फिर अकेले है

ज़िन्दगी है चार दिनों की
फिर क्यों ये झमेले हैं,
आए थे जग में अकेले
जाना फिर अकेले है।

इंसान है हैवान न बन
छल-दंभ की दुकान न बन,
कौन है अपना कौन पराया
सब दुनिया वाले तेरे हैं।
आए थे जग में अकेले
जाना फिर अकेले है।

(पूरी कविता captionमें पढें) #प्रकाशित कविता
जाना फिर अकेले है


ज़िन्दगी है चार दिनों की
फिर क्यों ये झमेले हैं,
आए थे जग में अकेले
जाना फिर अकेले है।
जाना फिर अकेले है

ज़िन्दगी है चार दिनों की
फिर क्यों ये झमेले हैं,
आए थे जग में अकेले
जाना फिर अकेले है।

इंसान है हैवान न बन
छल-दंभ की दुकान न बन,
कौन है अपना कौन पराया
सब दुनिया वाले तेरे हैं।
आए थे जग में अकेले
जाना फिर अकेले है।

(पूरी कविता captionमें पढें) #प्रकाशित कविता
जाना फिर अकेले है


ज़िन्दगी है चार दिनों की
फिर क्यों ये झमेले हैं,
आए थे जग में अकेले
जाना फिर अकेले है।

#प्रकाशित कविता जाना फिर अकेले है ज़िन्दगी है चार दिनों की फिर क्यों ये झमेले हैं, आए थे जग में अकेले जाना फिर अकेले है।