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स्वभाव की स्वीकारोक्ति मेरा जन्म चाहे जिस किसी भी

स्वभाव की स्वीकारोक्ति

मेरा जन्म चाहे जिस किसी भी
धर्म, भाषा एवं जाति में हुआ हो
मेरे आंतरिक स्वभाव में
अन्य प्रत्येक बाहरी
स्वभावों का स्वभाव
मेरे आंतरिक स्वभाव में
पूर्व निर्धारित ही विद्यमान है
इसलिए मैं बाहर की अपनी
प्रिय हर वस्तु या जीव के आकर्षण में
निरंतर उसी दिशा में बढ़ रहा हूं
यह मेरे स्वभाव को स्वीकार्य है
यदि, पर, अगर, मगर, परंतु , किंतु
क्या वास्तव में ऐसा कुछ भी हैं ?
अपितु यह स्वीकार नही है ?
तो इसे अस्वीकार कर देना
यह आपका अपना प्रिय स्वभाव है।

©अदनासा-
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