* वक़्त * मेरे चोट के निशान तुम कैसे देख पाओगे हमने डंडों से नहीं वक़्त से मार खाई है। मेरे दर्द को भला तुम कैसे समझ पाओगे...... जब घाव दिखते ही नहीं तुम मरहम कैसे लगाओगे हम अंदर से टूटे हैं तुम प्लास्टर कहां कराओगे मेरे दर्द को भला तुम कैसे समझ पाओगे..... कहानी जवानी की है जब पैसे ठुमको पर उड़ाते थे सिगरेट के धुएं का छ्ल्ला बनाके जाम से जाम लड़ाते थे आज वो दौर है हम पैसे पैसे को मोहताज हो गए हैं अब भला तुम भीड़ में कहां पाओगे हां मैंने डंडों की नहीं वक़्त से मार खाई है तुम मेरे दर्द को कैसे समझ पाओगे... - Seema yadav संघर्ष ही जिंदगी है@ आराम हराम है@