Nojoto: Largest Storytelling Platform

'पुरुष' सुलजेपन का ढोंग लिए हम, दिखते बहुत मसखरें

'पुरुष'

सुलजेपन का ढोंग लिए हम, दिखते बहुत मसखरें हैं।
पर, अंदर ही अंदर दिल जाने, हम कितने टूटे-बिखरे हैं।

सुबह से लेकर शाम तलक, ये अधरे जूठा हँसते हैं।
पर, मुखौटे पहनें चहेरे के पीछे, नजाने कितने ख्वाब पनपते हैं।

ना बच्चे हैं, ना स्त्री हैं हम, ना ही तो हम कुत्ते हैं।
इसी लिए शायद सब हमसे, प्यार नाप-तोल कर करते हैं।

कामयाब हुए तो कामयाबी को हम, सभीमें बांटते फिरते हैं।
नाकामयाबी में वही सब लोग, हमको ताने मारे फिरते हैं।

ज़िम्मेदारियों के बोझ तले हम, अपने सपने गाड़ा करते हैं।
कोई समझ नहीं पाएगा 'रुद्र', हम कितने उलझे-अकेले हैं।

- जय त्रिवेदी ('रुद्र')

©Jay Trivedi #पुरुष #man #Original #poem #mr_trivedi
'पुरुष'

सुलजेपन का ढोंग लिए हम, दिखते बहुत मसखरें हैं।
पर, अंदर ही अंदर दिल जाने, हम कितने टूटे-बिखरे हैं।

सुबह से लेकर शाम तलक, ये अधरे जूठा हँसते हैं।
पर, मुखौटे पहनें चहेरे के पीछे, नजाने कितने ख्वाब पनपते हैं।

ना बच्चे हैं, ना स्त्री हैं हम, ना ही तो हम कुत्ते हैं।
इसी लिए शायद सब हमसे, प्यार नाप-तोल कर करते हैं।

कामयाब हुए तो कामयाबी को हम, सभीमें बांटते फिरते हैं।
नाकामयाबी में वही सब लोग, हमको ताने मारे फिरते हैं।

ज़िम्मेदारियों के बोझ तले हम, अपने सपने गाड़ा करते हैं।
कोई समझ नहीं पाएगा 'रुद्र', हम कितने उलझे-अकेले हैं।

- जय त्रिवेदी ('रुद्र')

©Jay Trivedi #पुरुष #man #Original #poem #mr_trivedi
jaytrivedi5022

Jay Trivedi

New Creator