यूं ही नहीं मान्यता है बिंदी की, स्त्री में छुपे भद्रकाली के रूप को शांत करती है । यूं ही नहीं लगाती काजल, नकारात्मकता निषेध हो जाती है जिस आंगन स्त्री आंखों में काजल लगाती है होंठों को रंगना कोई आकर्षण नहीं, प्रेम की अद्भुत पराकाष्ठा को चिन्हित करती हुई जीवन में रंग बिखेरती है । नथ पहनती है, तो करुणा का सागर हो जाती है । और कानों में कुंडल पहनती है , तो संवेदनाओं का सागर बन जाती है । चूड़ियों में अपने परिवार को बांधती है, इसीलिए तो एक भी चूड़ी मोलने नहीं देती । पाजेब की खनक सी मचलती है, प्रेम में जैसे मछली हो जाती है । वो स्त्री है साहब... स्वयं में ब्रह्मांड लिए चलती है #हर_बेटी_मेरी ©Bibha Rani #City