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Death Anniversary Special आज पिताजी को गुजरे पूरे

Death Anniversary Special

आज पिताजी को गुजरे पूरे पाँच वर्ष हो गए । 
पांच साल पहले अट्ठाइस जून की रात को मैक्स हॉस्पिटल के आईसीयू के बाहर वेटिंग लाउंज में  कानों में इयर फोन लगाए मैं बैठा था ।

मोक्ष , मुक्ति पर न जाने क्या सुन रहा था । शायद निर्णय ही ऐसा लिया था की मन अशांत था ।
मुक्ति के द्वार पे खड़ी आत्मा को अपने मन को झूठा आश्वासन देने के लिए शरीर को कष्ट देकर वेंटीलेटर पर रोकना अस्वीकार किया था मैंने ।  न जाने कहां से मैं वो साहस ला पाया ।

मैं उस रात ईश्वर से बहुत सवाल किया , क्या सती सावित्री की कथा , क्या मार्कण्डेय ऋषि की गाथा ये सब सुनके उम्मीद जगने के बाद क्यों अंत में श्री कृष्ण का यही कथन याद रखना होता है की आत्मा अमर है जो केवल शरीर बदलती रहती है ।

और मौत के बाद जब वो शरीर जिसे अभी तक पिता कहकर संबोधित किया जा रहा था उसे शव पुकारा गया तो लगा शायद जन्म और मृत्यु जीवन रूपी पेंडुलम वाली घड़ी के दो कोने  है और आत्मा एक सेल । सेल खत्म , खेल खत्म ।  

फिर सोचा कुछ चीजें हमारे समझ से परे होती है । ये पांच इंद्रियां जीवन के इस गूढ़ रहस्य को सुलझाने में विफल है ।
 तर्क की तलाश में बेचैन रहने से बेहतर है उन्हे अपनी कहानियों में जिंदा रखो क्योंकि कहानियां कभी नहीं मरती , वो हमेशा जिससे मिलती है रोचक होकर ही मिलती है ।

©Pratyush Saxena death Anniversary special !
#punyatithi #FathersDay #Nojoto
Death Anniversary Special

आज पिताजी को गुजरे पूरे पाँच वर्ष हो गए । 
पांच साल पहले अट्ठाइस जून की रात को मैक्स हॉस्पिटल के आईसीयू के बाहर वेटिंग लाउंज में  कानों में इयर फोन लगाए मैं बैठा था ।

मोक्ष , मुक्ति पर न जाने क्या सुन रहा था । शायद निर्णय ही ऐसा लिया था की मन अशांत था ।
मुक्ति के द्वार पे खड़ी आत्मा को अपने मन को झूठा आश्वासन देने के लिए शरीर को कष्ट देकर वेंटीलेटर पर रोकना अस्वीकार किया था मैंने ।  न जाने कहां से मैं वो साहस ला पाया ।

मैं उस रात ईश्वर से बहुत सवाल किया , क्या सती सावित्री की कथा , क्या मार्कण्डेय ऋषि की गाथा ये सब सुनके उम्मीद जगने के बाद क्यों अंत में श्री कृष्ण का यही कथन याद रखना होता है की आत्मा अमर है जो केवल शरीर बदलती रहती है ।

और मौत के बाद जब वो शरीर जिसे अभी तक पिता कहकर संबोधित किया जा रहा था उसे शव पुकारा गया तो लगा शायद जन्म और मृत्यु जीवन रूपी पेंडुलम वाली घड़ी के दो कोने  है और आत्मा एक सेल । सेल खत्म , खेल खत्म ।  

फिर सोचा कुछ चीजें हमारे समझ से परे होती है । ये पांच इंद्रियां जीवन के इस गूढ़ रहस्य को सुलझाने में विफल है ।
 तर्क की तलाश में बेचैन रहने से बेहतर है उन्हे अपनी कहानियों में जिंदा रखो क्योंकि कहानियां कभी नहीं मरती , वो हमेशा जिससे मिलती है रोचक होकर ही मिलती है ।

©Pratyush Saxena death Anniversary special !
#punyatithi #FathersDay #Nojoto