ख़ुद से लड़ कर ख़ुद को पाया है, इस जंग में न जाने तुमने क्या-क्या गवांया है अब बचा क्या है जो तुझको पाना है, ये ज़िन्दगी तो बस कुछ पल का फ़साना है तू क्यों अब कल को रोता है, यहाँ न कोई कुछ पाता और न कुछ खोता है ये ज़िन्दगी कुछ पल की मझधार है, इसमें न जीत और न हार है "हिमांश" यहाँ जीने का एक सलीका है, कुछ कड़वा तो कुछ फ़ीका है कुछ कहने को तो सच्चे रिश्ते हैं, बाकी सब तो एक फ़रिश्ते हैं कुछ धीमी-धीमी सी छाया है और अन्त में जीवन कहीं समाया है॥ 🖋फ़िर अपनी क़लम से🖋 Self-esteem..!!!