पेड़ की छांव में छेकते गाय को भूल जाते पहुंचकर सभी राय को तुम बसेरा तुम्ही पर्यटन शाम तक डाल से डाल का देशाटन शाम तक खेल तू और तू ही मैदान था केरियां थी खजाना जड़ गोदाम था और उभरी जड़े घर की दीवार थी पत्तियां उस घरौंदे का श्रृंगार थी कांटे भी तब तो मेरे यार थे जोड़ने बांधने का वो हथियार थें और चोटी में जो खोह गोमुख सी थी जिनसे गंगा सी बहती थी सब डालियां वो था अपना ठिकाना छुपाना खजाना छोड़कर रात तक तुमको होता था जाना ©दीपेश #summergamesin90s #aamkaped #Nature