हुज़ूम यादों के उमड़ने लगे तब, हमने हर्फ़ दर हर्फ़ भर दिया था, दर्द की साक़ी से हमने, अपनी ज़िंदगी का जाम भर लिया था! मोहोब्बत की जब बात हुई, हमने सीना अपना ताक पर रख दिया था, हमें कम-ज़र्फ़ कहेंगे ही लोग, कि हमनें पैर कुल्हाड़ी पर रख दिया था! अब कैसे समझाएँ उन्हें, कि तलब में हमने जाने क्या क्या कर लिया था, जान दे देते हैं लोग बेख़ुदी में, हमने महज़ दिल पर पत्थर रख दिया था! एक शख़्स के देखे हमने कई चेहरे, हर चेहरे उसने नया हिज़ाब ढक लिया था, चुप हैं कि इश्क़ बदनाम ना हो, वरना नमक उसने भी ज़ख्मों पर रख दिया था! _Word_Collab_Challenge_ Collab करें मेरे साथ Urdu_Hindi Poetry आज का लफ्ज़ है "कम-ज़र्फ़" अब पहले की तरह एक विजेता नहीं बल्कि 3 विजेता चुना जाएगा,, जो सबसे पहला विजेता होगा उनको मैं अपने प्रोफाइल से testimonial करूंगा! और दूसरे और तीसरे नंबर वाले विजेता को 'हाइलाइट' किया जाएगा। Example: