तबियत में ख़ुद्दारी ख़्वाबों से भरी आंखे, होठों पर बस ख़ुदा की बन्दगी चलती है। ये साफ़गोई और मेरें शायराना अल्फ़ाज़, मुसलसल जमाने को ये बहुत ख़लती है। माँ-बाप की नेमत कहें या दोस्तों की दुआएं, लाख दुश्वारियां है फिर भी जिंदगी चलती है । 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को प्रतियोगिता:-43 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 4-6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा। 💫 प्रतियोगिता ¥43:- शायराना अल्फ़ाज़