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स्वप्न झरोखा... एक स्वप्न झरोखा झाँकता कुछ ख्वाहिश

स्वप्न झरोखा...
एक स्वप्न झरोखा झाँकता
कुछ ख्वाहिशों को उजागर कर
बेझिझक कुछ उम्मीद लगाता
यकायक टकटकी लगी आंखें जब उसकी
एक लाख जतन करती, कुछ उम्मीदें
जो अपेक्षित थी
एक निगाह पड़ी जब, छवि किसी की
धूमिल सी थी
झाँककर करीब से देखा तो
एक और स्वप्न समाहित लगा
तो क्या स्वप्ननो का कोई अंत नहीं
काल्पनिक से वास्तविकता के सफ़र तक
बस निरंतर बढ़ते ही जाना है?
#स्वातिकीकलमसे✍️

©swati soni
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