तुम्हारे तिरस्कृत भाव से मेरी प्रेम-आकांक्षा जल रही है, तुमसे मिलने की भावना मर रही है पर मरी नहीं है। तुम चन्द्र सी दूरी अटल हो पर मन चकोर सा हठप्रिय है, ये शेष-प्रेम की कहानियाँ तो अतीत से है नई नहीं है।। अपने विरह की वेदना को था मौन पथ से भेजा प्रिय मैं, क्या तुम्हारी अल्हड़-हठखेलियों पर कोई दस्तक हुई नहीं है। सच बताना तुम जरा क्या नींद में होकर भी आँखे रातें-रातें जगी नहीं है।। ©बृजेन्द्र दूबे 'बावरा' तुम्हारे तिरस्कृत भाव से मेरी प्रेम-आकांक्षा जल रही है, तुमसे मिलने की भावना मर रही है पर मरी नहीं है। तुम चन्द्र सी दूरी अटल हो पर मन चकोर सा हठप्रिय है, ये शेष-प्रेम की कहानियाँ तो अतीत से है नई नहीं है।।