कवि ने तो कर दिया धरा का आसमान से मिलन, विज्ञान ने उसे नकार कर कवि का दुखी कर दिया मन हे कवि रचो कुछ और, जहाँ न हो विज्ञान की ठौर अब सब कल्पना से परे है कवि पड़ो विज्ञान अब वन विहीन जंगल में मंगल लगेगा अज्ञान हे कवि रचो कुछ और, जहाँ न हो विज्ञान की ठौर वैसे ही हो चुकी है दुनिया बहुत जहरीली अब जहर से डूबी स्याही की कलम चमकीली उसे प्रलय को न धकेल दे हे कवि रचो कुछ और, जहाँ न हो विज्ञान की ठौर लिखो फिर से शिशु की लोरिया सृजन के गीत रचो मिल बैठ फिर से , सुनहरा अतीत ©Kamlesh Kandpal #Vigyan