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आज फिर याद आयी मुझे मेरे शहर की जहाँ ना कोई

आज फिर याद आयी मुझे मेरे शहर की      
जहाँ ना कोई नुमाइश और ना कोई ही ख़्वाहिश      
चेहरे वहाँ हज़ार हैं लेंकिन सब बेनकाब हैं      
उस शहर में न कोई हथियार हैं और न ही कोई दवा        
 महफिले तो हज़ारो होती हैं वहाँ          
लेकिन फ़सानो में किस्से नही कहानियां होती है लोगों की जहां        
फिर रूबरू होना चाहता हुँ में दुनियां से         
 यूँ मगरूर होना अब शोक़ नहीं        
 देख लिया ज़लील होके हमने         
    अब मरहम नही बचा इस नमक के शहर में              
  ख्वाहिशे अधूरी ही सही क्यूँ ना फिर जियां जाए             
                चलो आज उस शहर में फिर यूँही मदहोश हुआ जाए.......                     
                                 pawan bhargav @ख्वाबों का शहर
आज फिर याद आयी मुझे मेरे शहर की      
जहाँ ना कोई नुमाइश और ना कोई ही ख़्वाहिश      
चेहरे वहाँ हज़ार हैं लेंकिन सब बेनकाब हैं      
उस शहर में न कोई हथियार हैं और न ही कोई दवा        
 महफिले तो हज़ारो होती हैं वहाँ          
लेकिन फ़सानो में किस्से नही कहानियां होती है लोगों की जहां        
फिर रूबरू होना चाहता हुँ में दुनियां से         
 यूँ मगरूर होना अब शोक़ नहीं        
 देख लिया ज़लील होके हमने         
    अब मरहम नही बचा इस नमक के शहर में              
  ख्वाहिशे अधूरी ही सही क्यूँ ना फिर जियां जाए             
                चलो आज उस शहर में फिर यूँही मदहोश हुआ जाए.......                     
                                 pawan bhargav @ख्वाबों का शहर

@ख्वाबों का शहर #कविता