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रौनकें बहार अब लगती नहीं हैं सब महीफलं सें जुदा हो

रौनकें बहार अब लगती नहीं हैं
सब महीफलं सें जुदा हों रहें हैं
दर्द की खामोश निगाहें  लिए 
अब ज़ख्मों सें दास्तान सुना रहें हैं
ग़मों की दहलीज पर चोटों को लिए 
अपनें दर्द को बहला रहें हैं
कहाँ खों गए  वो दर्द के कारवां
जिसमें  जिन्दगी कों पा रहें हैं
अब शोर महीफलों का गूँजता नहीं
फिर दर्द के लिपटें आसुओं को क्यों 
अब महीफल में छुपा रहें हो

©Anshu writer #कविता #motivate #nojohindi 
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