'साँवरी हूँ मैं' ............... कृष्ण-सा रंग,कृष्ण के संग बावरी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। घनानंद के प्रेम के पीर पर बलिहारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। र्दुबुद्धि से उत्पन्न उसके बीज का संहारकारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। कदंब की अनोखी डाली-सी चमत्कारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। प्रकृति की नैसर्गिक छटा-सी मनोहारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। संपूर्ण जगत में प्रेम की संचारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। मानव की मानवीयता का प्रतिहारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। श्वेता कुमारी विशुनपूर(गायत्री नगर),धनबाद झारखंड। ©sweta kumari छायावाद को स्पर्श करती कविता #one session