तपते ज्येष्ठ में बारिश की बूंदं सा ठंडी सर्द सुबहों में गुनगुनी धूप सा बसंत की महकती पुरवाई सा सावन की रिमझिम बरसात सा माखन सा कोमल, और मिश्री सा मीठा तेरा अहसास है मेरे गोविंन्द तो कैसे ना तुझे प्यार करें गर दीवाना है ज़माना तेरा तो कुसूर तेरी मनहोहक छवि का है प्यारे जो देख ले एक नज़र भर तुम्हें फिर उसे कुछ और देखने की जरूरत नही रहती।। Dee pa #कान्हा. .