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ये जो मुसकान है ग़मों से निकली है... ज़िंदगी बारहा

ये जो मुसकान है ग़मों से निकली है...
ज़िंदगी बारहा सदमों से निकली हैं..।

देखॊ तो मेरॆ अशआर मॆं लहू है...
ग़ज़लें ये तमाम ज़ख्मों से निकली हैं..।

सुकून इक दिन आते हुए मर न जाए...
खुदकुशी भी बहुत जन्मों से निकली है..।

                 - ख़ब्तुल
             संदीप बडवाईक

©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 खुदकुशी
ये जो मुसकान है ग़मों से निकली है...
ज़िंदगी बारहा सदमों से निकली हैं..।

देखॊ तो मेरॆ अशआर मॆं लहू है...
ग़ज़लें ये तमाम ज़ख्मों से निकली हैं..।

सुकून इक दिन आते हुए मर न जाए...
खुदकुशी भी बहुत जन्मों से निकली है..।

                 - ख़ब्तुल
             संदीप बडवाईक

©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 खुदकुशी