हस्ती ***** महज इल्जाम गढ़ने से समंदर छोटा नही होता कई सिक्के जमाने मे सभी खोटा नही होता।। तुम मुट्ठी भींच तो लोगे आसमां को झुकाने को तेरी औकात है कितनी? धुआं भी हाथ न होगा। कभी जो शोर करते हो बगावत की लकीरों पर महज बदनामियों से क्या खुदा का खेद जता लोगे? जमीं पर पांव रखते हो बड़प्पन खूब गाते हो जब सांसे छोड़ आओगे यही सीने लगा लेगा। जिसे अदना जताते हो सगा इंसान है कोई फकत चिंगारियों से क्या तुम दुनियां जला दोगे? कभी हुंकार सुनना हो धरा के छोर पर जाओ तेरी बुलंद आवाज़ों का अनुत्तर शोर पाओगे। अमिट ये छाप होता है इंसाँ जो संजोता है फकत तुम नाम गढ़कर क्या खुदाई को मिटा दोगे?? लिखावट मौन है मेरा ऊंचाई व्योम में पसरा तेरे चीखने से क्या तुम धरती हिला लोगे? ये दुनियां मंच है ऐसा कई आए,चल दिये महज रुतवा दिखाकर क्या इसे अपना बना लोगे?? कफन से वास्ता तेरा कफन से वास्ता मेरा तुम ऊंचे घर मे रहकर क्या मेरी हस्ती मिटा दोगे?? दिलीप कुमार खां""""अनपढ़"" #हस्ती