दीवारों की इन दरारों में कई राज़ लिखे हैं मैंने, हर राज़ में हम दोनों के किस्से बयाँ किये हैं मैंने, बड़ी संजीदगी से सँवारा है तुमको मैंने अपने शब्दों में, तुम्हारे नाम संग हर राज़ में खुद का नाम लिखा है मैंने।। इंतज़ार में तुम्हारे सुबह से शाम किया है मैंने, फिर रातों में तुम्हारी बाँहों में आराम किया है मैंने, महसूस किया है मैंने तुम्हारे साँसों की गर्मी को, अपने लबों को कुछ यूँ तुम्हारे लबों पे ठहराव दिया है मैंने।। हम दोनों के जज़्बातों को एक धागे में पिरोया है मैंने, बड़ी ही नज़ाकत से रूह को तुम्हारे छुआ है मैंने, इश्क नाम है उस धागे का जिससे तुम्हें खुद से बाँधा है मैंने, तुम तक पहुँचने का एक हसीन सफ़र शुरू किया है मैंने।। ©Nikhil दीवारों की इन दरारों में कई राज़ लिखे हैं मैंने, हर राज़ में हम दोनों के किस्से बयाँ किये हैं मैंने, बड़ी संजीदगी से सँवारा है तुमको मैंने अपने शब्दों में, तुम्हारे नाम संग हर राज़ में खुद का नाम लिखा है मैंने।। इंतज़ार में तुम्हारे सुबह से शाम किया है मैंने, फिर रातों में तुम्हारी बाँहों में आराम किया है मैंने, महसूस किया है मैंने तुम्हारे साँसों की गर्मी को,