फूलों सी प्यारी थी,, आंगन की किलकारी थी।। बोलती तो चुप न होती,,मस्तियों की पिटारी थी।। आंखों में चमक थी,, बातो में चहक थीं।। हरकतों से अथक थी।। चाय की सी प्याली थी,,घर की उजियाली थी।।। सपने जिसके बड़े बड़े सुनाए सबको एक टांग पर खड़े खड़े,, बाते बताए बाह फैलाकर मानो हवाओं से हर पल लड़े।। नाजुक सी वो फ्राक में बच्ची,,बाते जिसकी रब सी सच्ची।। चाहे दिल उसकी हर बात पर यकीन करू,,संग मिल कर उसके सारे सपने सच करूं।। कोई गैर नही ये मेरे अंदर का बच्चा हैं,,जो खो गया वक्त के मेले में,, जिससे मिलकर बाते करना,, लगा मुझे बड़ा ही अच्छा हैं।। ©KAJAL The poetry writer #poetry #jeurnoyoflife #fish