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36 रंगमंडप आये यौगंधरायण करते राजन का जयघोष, परिचि

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रंगमंडप आये यौगंधरायण करते राजन का जयघोष,
परिचित ध्वनि परंतु अपरिचित थे
उनके आवरण भेष।
पूछा राजन ने,हे ब्राह्मण! क्याआपकी बहन यहाँ धरोहर? 
कहा अमात्य नें और क्या? चढ़ा
भृकुटी बाँक तेवर।
वापस करदें इन्हें सादर पूर्वक शिघ्र हीं इनकी बहना,
दरस करके धाई ने कही,निश्चित ये
वासवदत्ता कुलीना।
रहस्योद्घाटन में हीं था अब सर्वजन का हित निहित,
राजन की जय, आर्यपुत्र की जय बोल दोनों 
भये मूलरूप प्रकटित ।

©RAVINANDAN Tiwari #स्वप्नवासवदत्ता
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रंगमंडप आये यौगंधरायण करते राजन का जयघोष,
परिचित ध्वनि परंतु अपरिचित थे
उनके आवरण भेष।
पूछा राजन ने,हे ब्राह्मण! क्याआपकी बहन यहाँ धरोहर? 
कहा अमात्य नें और क्या? चढ़ा
भृकुटी बाँक तेवर।
वापस करदें इन्हें सादर पूर्वक शिघ्र हीं इनकी बहना,
दरस करके धाई ने कही,निश्चित ये
वासवदत्ता कुलीना।
रहस्योद्घाटन में हीं था अब सर्वजन का हित निहित,
राजन की जय, आर्यपुत्र की जय बोल दोनों 
भये मूलरूप प्रकटित ।

©RAVINANDAN Tiwari #स्वप्नवासवदत्ता