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जिससे उम्मीद रखो वही ना उम्मीद करते है लोग तो अ

 जिससे उम्मीद रखो 
वही ना उम्मीद करते है 
लोग तो अब दूर से ही 
दिवाली और ईद करते है 
दरवाजे आज भी 
खुले रखे जाते है शाम को 
मिलने जुलने मे अब लोग 
परहेज करते है 
खुशियाँ लेकर अब कोई 
मिलता नहीं कहीं 
सभी तो जिन्दगी को 
गमों की सेज करते है
ये कौन भरता है दर्द जिन्दगी में 
कैसे कैसे रँग रंगरेज भरते हैं

©Ravikant Dushe
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