(जान देने की बात आये तो हर एक पीछे है हट जाते.. फिर वो कौन लोग थे, जो जान की बाजी खेल खेल में है लगाते.. ) ना धर्म कोई, नाही थी कोई जाती.. केवल और केवल वो था भारतवाशी.. लड़ गया वो , निर्भय था और भीड़ गया, एक - एक वार को वो हँसकर सह गया.. था वो धुंधला बस चींख और कराह का मंजर द्रोहियो ने पीछे से पेट में जो मारा था खंज़र.. फिर भी रुका नही, ना ही वो डरा, जान हथेली पर लिए फिर से वो उठ हुआ खड़ा .. खून से लथपथ ,सिर पर बांध कफ़न वो चिल्ला उठा .. उसकी गर्जना से दुश्मन भी थर्रा उठा .. जान की बाजी लगाकर वो सबको मार गिरा दिया.. अपनी भारतमाता की लज़्ज़ा बचाकर खुद की जान गवा दिया.. घर का आंगन छुट गया ,हर एक से रिश्ता टूट गया.. कईयो के सपने तोड़ गया, कईयो को जिंदगी दे गया.. कितने बंधन बंधे, तो गूंजी थी कितनी ही किलकारिया. . हाथों की मेहंदी से नही गयी थी अभी भी लालिमा.. अपनी आखरी साँस में भी, वो जीभर के जिंदगी जी गया कईयों को रोता छोड़ गया , कईयों को मुस्कान दे गया.. ©unmukt sanjana #jay_ho #Jay_Hind #jay_bharat #PulwamaAttack