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सांसों की रफ्तार बढ़ा के रख । जंग-ए-फतह करनी है तो

सांसों की रफ्तार बढ़ा के रख ।
जंग-ए-फतह करनी है तो, तलवार में धार लगा के रख।।

परेशाँ क्यों है?धैर्य रख मंजिल मिलेगी ।
पहले जरा जीवन के कड़वे फल तो चख  ।।

सुख-दुख, मिलन-बिछड़न, सास्वत जान ।
 एक मिले तो आराम से ,बढ़ दूजे तक ।।
 
ये मंदिर - मस्जिद का, चक्कर छोड़ ।
यदि पुरुषत्व है तो ,बाजुओं पर यकीं रख ।।

अनुनय-विनय , कहाँ किसने मानी ।
यकीं हो जाएगा, सागर-राम का प्रसंग उठा के लख ।।

पगडंडियों को छोड़ , जद्दोजहद तो कर ।
निशाँ अमिट बनाना है तो ले नवीन एक पथ ।।

                 Arun Kumar 'बंजर'
                             (Poet)

©Arun Kumar Banjar धार लगा के रख..
सांसों की रफ्तार बढ़ा के रख ।
जंग-ए-फतह करनी है तो, तलवार में धार लगा के रख।।

परेशाँ क्यों है?धैर्य रख मंजिल मिलेगी ।
पहले जरा जीवन के कड़वे फल तो चख  ।।

सुख-दुख, मिलन-बिछड़न, सास्वत जान ।
 एक मिले तो आराम से ,बढ़ दूजे तक ।।
 
ये मंदिर - मस्जिद का, चक्कर छोड़ ।
यदि पुरुषत्व है तो ,बाजुओं पर यकीं रख ।।

अनुनय-विनय , कहाँ किसने मानी ।
यकीं हो जाएगा, सागर-राम का प्रसंग उठा के लख ।।

पगडंडियों को छोड़ , जद्दोजहद तो कर ।
निशाँ अमिट बनाना है तो ले नवीन एक पथ ।।

                 Arun Kumar 'बंजर'
                             (Poet)

©Arun Kumar Banjar धार लगा के रख..