अजब थी सोच नतीजे भी क्या ग़ज़ब आए! अजब नहीं कि समझ में भी उसको अब आए! ये क्या कि तुम तो बुलंदी पे उड़ते फिरते थे! तुम्हारे पंख कहां हैं, ज़मीं पे कब आए? बस उसके आने से इक सिलसिला चल निकला, गली-गली कई फ़ितने तो बे-सबब आए। जो अहरमन को बना बैठे हैं ख़ुदा अपना, वो चाहते हैं बचाने उन्हें भी रब आए! ख़ुदाया नूर से कर दे जहां को रोशन फिर, न ज़िंदगी में किसी की अंधेरी शब आए। जहां में यूं तो कमी थी न ज़र्फ़ वालों की, हमारी बज़्म में ही लोग बे-अदब आए। #Aliem #ajab_soch #coronapandemic #urduhindi_poetry #bulandi #khudaya #goverment_failure #yqbhaijan शब - Night अहरमन - Devil बज़्म - Assembly ज़र्फ़ - capable, noble, patience