इतिहासों के पन्नों में कहानी एक और जोड़ क्यों नहीं देते। दहशतगर्दों की राहों को दोज़ख़ की ओर मोड़ क्यों नहीं देते। वतन पर उठे नापाक निगाहें, आंखें वो फोड़ क्यों नहीं देते। जिस मुंह से लगे पड़ोसी मुल्क के जयकारे, मुंह वो तोड़ क्यों नहीं देते। विनोद विद्रोही