सुबह सुबह की वो पहली ओस की बूँद देखो शायर की शायरी बन गयी कभी माशूक की आँख का मोती कभी सागर की सीपी बन गयी शेरों में नूरे खुदा बन वो ढली पत्तों पे थरथराती रही बन के कली कब बचपन से जवानी की दहलीज पर ढली