## हवा का संदेसा..## सोचा तेरी राह चलू.... तेरे घर से संदेसा लाई हुँ ले तुझे दे चलू...।। माना तू फर्ज अदा कर राहा है मात्रभूमी का..कर पर जिस माँ ने तूझे जन्म दिया उसे भी याद कर...।। वो बुढी माँ हर रोज तेरे आने की राह तकती है... अकेले में रोती है मगर सबके सामने हँसती है...।। तेरे घर के आंगन में लगा वो पेड भी अब तुझसे रुठ गया है... तेरे आने के इंतजार में वो बेचारा भी अब सूख गया है...।। ना जाने तू कब आएगा तेरे घर के आंगन की मीट्टी भी तेरे कदमो को छूना चाहती है...... सायद तूझे याद होगा तेरे बहन दो साल से रक्षाबंधन अकेले मनाती है...।। रोती तो है वो भी मगर वो खुद को संभाल लेती है... मेरा भाई आज आएगा इस चाव में रोज तेरा कमरा संवार देती है...।। किस असमंजस में फसा है तू आखिर कब इस सें बाहर आएगा.... अब तो तेरा बापू भी मुझसे पूछ लेता है मेरा बेटा घर कब आएगा...।। जलते तो है दिये दिवाली में तेरे बिना भी उस घर में... मगर वो दिये रोनक नही कर पाते....।। अ खुदा काश तिज त्यौहारो में ये जवान अपने घर जा पाते..।। अब तो आलम कुछ ऐसा है उस घर जाने से घबराती हुँ... कहीं उस बुढी माँ के आंसू ना देख लूँ इस बात से डर जाती हुँ..। आखिर कब तक भूला बैठा रहेगा तू उस घर को जिस घर का तू एक ही एक सहारा है..। अब तो में भी पूछ रही हुँ तुझसे ऐ जवान तू घर कब आ राहा है..तू घर कब आ राहा है...।। #solder,#ghar kab aaoge,