मेरा किस्सा मैंने फाड़े नहीं है वह पन्ने, जो जिंदगी में कभी अहम, नायाब हुआ करते थे , थरथराते हैं मेरे हाथ अब भी, उन फाड़े हुए पन्नों के, टुकड़े-टुकड़े करने से, जो गीत सुनकर में डूब जाता था, तेरे होने की मौजूदगी में, वो अब भी कसक बन कर, चुभ सा जाता है सीने में कहीं, हां भूल चुका हूं तू मेरी , जिंदगी के हिस्से में थी कभी, पर वो जिंदगी का हिस्सा ही तो, बहुत ज्यादा याद आता है, वो खिल खिलाकर हंस देना तेरा, चिड़चिड़ापन ,बेरुखी, नाराजगी , मनाना मेरा, रूठ कर मान जाना तेरा, अब तू नहीं फिर भी कहीं, हर कहीं तू ही तो मेरे , आंसुओं, तकलीफ, गमो का, बेजान साथ किस्सा, नही चाहता तेरी यादो को मै जीना, हाँ तू नहीं है मेरा हिस्सा, बन जो गई है, अब मेरा किस्सा, मेरा किस्सा...।। चेतना शर्मा मौलिक व स्वरचित #स्वयंसेसंवादआवश्यक