एक रोज़ मैं बड़ी तबीयत के साथ उछालूँगा आसमान में एक पत्थर और कोशिश करूँगा एक तारा तोड़ने की हो सका तो लम्बी लकड़ी से भी झटकूँगा पूरा ज़ोर लगाऊँगा एक तारा तो ज़रूर तोड़ लगाऊँगा फिर भी ना टूटा मुझसे वो तो रात भर आसमान को ताकता रहूँगा कुछ माँगना हैं मुझें तारो से शायद वो ही कोई रास्ता देदे बस एक यही ख़्वाब है जिसको देखने के लिए मैं सोता हूँ पर मुझें नींद नही आती बड़ी मुश्किल से बिस्तर के किसी कोने में एक आराम आता हैं और फिर सुबह हो जाती हैं पता नहीं ये क्या होता हैं ये क्यों होता हैं पर वो सपना बड़ा हसीन हैं अफ़सोस मुझें अब सपने नहीं आते तुम्हारी आँखों मे एक अलग चमक हैं तुम सुनाओ तुम्हें कौनसे से ख़्वाब आते हैं ? उज्ज्वल~ ©Ujjwal Sharma एक रोज़ मैं बड़ी तबीयत के साथ उछालूँगा आसमान में एक पत्थर और कोशिश करूँगा एक तारा तोड़ने की हो सका तो लम्बी लकड़ी से भी झटकूँगा