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यलगार भी बिकता, वल्गार भी बिकता है। जीतने की तलब ह

यलगार भी बिकता, वल्गार भी बिकता है।
जीतने की तलब हो, तो तलबगार भी बिकता है।।
यार भी बिकता है, प्यार भी बिकता है ।
 बस कीमत सही हो, सारा संसार बिकता है।।
न पूछो पैसे से पैसे की कीमत ।
जहां पैसा टिकता है, वहां कोई और नहीं टिकता है ।।
खरीदने वाले का बस चले तो, खुद को भी बेच दे ।
खरीदने वाले (व्यापारी) को , व्यापार के अलावा कहां कुछ और दिखता है ।।
मैंने देखा है, सुना है, पड़ा है.... मजबूरी में हर चीज बिक जाती है ।
खरीदने वाले को कीमत, बिकने वाले को कीमत.... बाकी इंसान को इंसान कहां दिखता है।।

©Asheesh indian
  #Dark #HUmanity