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बुढ़ापे में जो हो जाए उसे हम प्यार कहते हैं, जवानी

बुढ़ापे में जो हो जाए उसे हम प्यार कहते हैं,
जवानी की मुहब्बत को फकत व्यापार कहते हैं ।
जो सस्ती है, मिले हर ओर, उसका नाम महंगाई
न महँगाई मिटा पाए, उसे सरकार कहते हैं ।

जो पहुंचे बाद चिट्ठी' के उसे हम तार कहते हैं,
जौ मारे डाक्टर को हम उसे बीमार कहते हैं ।
जो धक्का खाक चलती है उसे हम कार मानेंगे,
न धक्के से भी जो चलती उसे सरकार कहते हैं ।

कमर में जो लटकती है, उसे सलवार कहते हैं,
जौ आपस में खटकती है, उसे तलवार कहते हैं ।
उजाले में मटकती है, उसे हम तारिका कहते,
अँधेरे में भटकती है उसे सरकार कहते हैं ।
 
मिले जो रोज बीवी से उसे फटकार कहते हैं
जिसे जोरू नहीं डांटे उसे धिक्कार कहते हैं ।
मगर फटकार से धिक्कार से भी जो नहीं समझे
उसे मक्कार कहते हैं उसे सरकार कहते हैं ।

सुबह उठते ही बिस्तर से ' कहाँ अखबार कहते हैं
शकल पर तीन बजते 'चाय की दरकार' कहते हैं ।
वे कहती हैं ' चलो बाजार ' हंसकर शाम के टाइम,
तो हम नजरें झुका कर ' मर गए सरकार ' कहते हैं 

 #NojotoQuote sarkar
बुढ़ापे में जो हो जाए उसे हम प्यार कहते हैं,
जवानी की मुहब्बत को फकत व्यापार कहते हैं ।
जो सस्ती है, मिले हर ओर, उसका नाम महंगाई
न महँगाई मिटा पाए, उसे सरकार कहते हैं ।

जो पहुंचे बाद चिट्ठी' के उसे हम तार कहते हैं,
जौ मारे डाक्टर को हम उसे बीमार कहते हैं ।
जो धक्का खाक चलती है उसे हम कार मानेंगे,
न धक्के से भी जो चलती उसे सरकार कहते हैं ।

कमर में जो लटकती है, उसे सलवार कहते हैं,
जौ आपस में खटकती है, उसे तलवार कहते हैं ।
उजाले में मटकती है, उसे हम तारिका कहते,
अँधेरे में भटकती है उसे सरकार कहते हैं ।
 
मिले जो रोज बीवी से उसे फटकार कहते हैं
जिसे जोरू नहीं डांटे उसे धिक्कार कहते हैं ।
मगर फटकार से धिक्कार से भी जो नहीं समझे
उसे मक्कार कहते हैं उसे सरकार कहते हैं ।

सुबह उठते ही बिस्तर से ' कहाँ अखबार कहते हैं
शकल पर तीन बजते 'चाय की दरकार' कहते हैं ।
वे कहती हैं ' चलो बाजार ' हंसकर शाम के टाइम,
तो हम नजरें झुका कर ' मर गए सरकार ' कहते हैं 

 #NojotoQuote sarkar