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विजय दशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं... मैं रावण

विजय दशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं...

मैं रावण
********
स्वीकारिए या नकारिए मैं एक पथ प्रणेता था।
अपने संस्कृति का लोगो मैं इकलौता नेता था।
रक्ष-संस्कृति का ध्योतक मैं...
शिव-शंकर का चहेता था...
न विचारो से कभी क्षीण था..
कई कौशलों में प्रवीण था...
स्वयं को साबित करने की...
मुझ में शक्ति अन्जानी थी...
बात ये केवल मेरे मन की स्वयं
विष्णु जी ने जानी थी...
समय रहते ही लीला रचने का उन्होने था आह्वान किया...
सहर्ष ही लोगो स्वयं की गति को मैने था स्वीकार किया..
उनको डर था सृष्टि में कोई तुमसा नही योद्धा होगा...
राम रूप में आ धरती पर यह कार्य मुझे करना होगा...
इस रचित कथा का धरती पर  अंश न कोई दिखाता है...
यही कारण है चरित्र मेरा दूषित समझा जाता है...
यह लीला थी नाट्य कला थी कथा थी एक बलिदान की...
स्वयं हरि की विजय को लगाई बाजी मैने निज प्राण की...
आज की लीलाओं में दिखाना सत्य का भी कुछ मंचन...
कैसा था मै संयमी...
हृदय से था मैं भी #कंचन...!!!

सुधा भारद्वाज"निराकृति"

©सुधा भारद्वाज #Dussehra2021
विजय दशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं...

मैं रावण
********
स्वीकारिए या नकारिए मैं एक पथ प्रणेता था।
अपने संस्कृति का लोगो मैं इकलौता नेता था।
रक्ष-संस्कृति का ध्योतक मैं...
शिव-शंकर का चहेता था...
न विचारो से कभी क्षीण था..
कई कौशलों में प्रवीण था...
स्वयं को साबित करने की...
मुझ में शक्ति अन्जानी थी...
बात ये केवल मेरे मन की स्वयं
विष्णु जी ने जानी थी...
समय रहते ही लीला रचने का उन्होने था आह्वान किया...
सहर्ष ही लोगो स्वयं की गति को मैने था स्वीकार किया..
उनको डर था सृष्टि में कोई तुमसा नही योद्धा होगा...
राम रूप में आ धरती पर यह कार्य मुझे करना होगा...
इस रचित कथा का धरती पर  अंश न कोई दिखाता है...
यही कारण है चरित्र मेरा दूषित समझा जाता है...
यह लीला थी नाट्य कला थी कथा थी एक बलिदान की...
स्वयं हरि की विजय को लगाई बाजी मैने निज प्राण की...
आज की लीलाओं में दिखाना सत्य का भी कुछ मंचन...
कैसा था मै संयमी...
हृदय से था मैं भी #कंचन...!!!

सुधा भारद्वाज"निराकृति"

©सुधा भारद्वाज #Dussehra2021